बिषहरी का आना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा
छवो घाटी में पूजा करने के लिये
होरे घाट पूजे लगली हे माता मैना बिषहरी हे॥
होरे पहिली घाट पूजे हे माता पान सुपारी हे।
होरे दोसर हो घाट रे माता तेल जै सिन्दूर हे॥
होरे तीसर ही घाटे हे माता अगर चन्द हे।
होरे चौथी घाट हे माता ओंकरी अच्छत हे।
होरे चारो घाट पूजे हे माता उज्जैनि नगर हे।
होरे उज्जैनी नगर हे बसे बासू सौदागर हे॥
बासू सौदागर के घर पर बिषहरि का जाना
होरे बुढ़िया रूपे धरी हे माता चली बरु भेली हे।
होरे जाय जुमली हे माता बांसु केर आवास हे॥
होरे अपना दुआरी गे बिहुला बैठी खेलाय रे।
होरे बाबा के दुआरी गे बिंहुला गीतवा गावए रे।
होरे काका दुआरी गे बिहुला गीतवा गावए हे॥
होरे भाई का दुआरी गे बिहुला घुरवा फटकाए हे।
होरे बुढ़िया का रुषे हे माता देले दरशन हे॥
होरे गेन्दर भीतर हे माता ओढ़न पहिरन हे।
होरे गुला घेघ आवे माता पी तो कुबरी हे।
होरे आंखों दोनों लेले हे माता बड़-बड़ गेजर हे।
होरे एक रूप कैसे हे माता मैना बिषहरि हे॥
होरे दुअरा बैठिए गे माता पछिया सुमरे रे।
होरे बतास-बतास रे दइवा धूरि जे पड़ले रे॥
होरे धुरी पड़ते रे माता दे देती सराप हे।
होरे बारी राड़ी होइहेगे बिहुला कोहवर हे॥
होरे बिहराती रखिये बिहुला सिर का सिंदूर हे।
होरे इतना सुनिगे बिहुला दइछे जबाब गे।
होरे बिना अपराधे रे बुढ़िया काहे गाली देले गे॥
होरे बिहाराती आवेगे बुढ़िया होइब मैं राड़ रे।
होरे छवो तो महीनवा गे बुढ़िया जलभासब रे।
होरे हम बरू जायब गे बुढ़िया मएना नगर रे॥
होरे सत से बांधल गे बुढ़िया तैतीस कोटि देव रे।
होरे सत जे करायेगे बुढ़िया स्वामी दान पायब रे॥
होरे देखबा से सतगे बिहुला आजु तो तोहार रे।
होरे बुढ़िया के गाली के बिहुला रोदन कराय रे॥
होरे कांती जे गेला गे बिहुला माई केर पास रे।
होरे बड़ी राड़ होइहैंगे माता गारी मोहि देल रे॥
होरे बिहाराती खोइबेगे बिहुंला सिर के सिन्दूर रे।
होरे गारी नामे आबेगे मनि के मस क्रोध भेल रे॥
होरे दोड़ली जे गेली गे मन के दुअरा ऊपर रे।
होरे कहाँ गेली किया भेली बुढ़िया गाली देले।
होरे अलोती भेलती हे माता मैना बिषहरि हे।
होरे कबहुं न देखले हे मणिको बुढ़िया का रूप हे।
होरे चली बरु भेलि हे मनिका अपना आवास हे।