बिसात / शोभना 'श्याम'
मैं बनी रही
सिर्फ एक बिसात
और तुम खेलते रहे
चाल पर चाल
तुमने समझ लिया
इतनी ही बिसात है मेरी
कि बनी रहूँ तुम्हारी बिसात
और तुम खेलते रहो
चाल पर चाल ...
लेकिन ...
जिसे समझते हो तुम
मेरी कमजोरी
वे तो संस्कार हैं मेरे
और शक्ति सहने की
जो मिली है
माँ और धरती से
वर्ना ...
क्या बिसात थी तुम्हारी
कि बना के रखते मुझे
बिसात अपने खेल की
मेरी ज़रा-सी जुम्बिश
पलट सकती है
सारे मोहरे तुम्हारे
देखा है न ...
शोषण से
अघाई हुई पृथ्वी को
एक हलचल उसकी
कर देती है कितना विध्वंस
वही हाथ जो करते रहे
उसका चीर हरण
उठ जाते हैं याचना कि मुद्रा में
धराशायी हो जाते हैं
अहम के ऊँचे-ऊँचे भवन
मलबे के ढेर में बदल जाते हैं
उनके सारे चातुर्य
याद रखना ...
वही धरती
बसती हैं मुझमें भी
मैं सिर्फ़ बिसात नहीं
तुम्हारे खेल की