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बीच का पहाड़ / शिवशंकर मिश्र
Kavita Kosh से
हम लोगों ने वर्षों की मेहनत के बाद
एक पहाड़ बनाया
हम चोटी पर थे, नीचे देखा
सब कुछ बड़ा अविश्वसनीय लग रहा था
लोग बौने हुए।
हम नीचे आ गए, देखा
पहाड़ पर चलते-फिरते सभी उसी तरह
बौने हुए अब भी।
पहाड़ ने दूर-दूर तक खइयाँ बना दी थीं
जो नजर आ रहा था, गलत था
जो सही था, नजर नहीं आ रहा था
हम लोगों ने तय कर लिया है-
यह पहाड़ अब खड़ा नहीं रहेगा !