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बीच के / मुकेश नेमा
Kavita Kosh से
हैं तिरस्कृत
नहीं हम से
कर दिये गये
जो निर्वासित
जन्मते ही
निवासी अज्ञात के
अभिशापित अलिगीं
हैं इनके ही
दुख इनके
बाँटे नहीं हमसे
इन्होंने कभी
फिर भी बड़े से
मन में इनके
होती है बची कैसे
जगह बहुत सी
शुभ के लिये हमारे
क्यों सोचे हम
बारे में इनके
जो हैं नहीं हमारे
नहीं हम से
पर वो तो
सोचती ही होगी
जागती साथ
गीले तकिये के
माँ फटे कलेजे वाली
आयी अनायास द्वार
हर टोली में इनकी
होगी तो तलाशती
सद्धजात उस शिशु को
जो खो गया है अनाम