भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीजने / पवन करण
Kavita Kosh से
इस बीच सब इन्हें भूल जाते हैं
किसी को याद नहीं रहता
सींकों पर पुराने कपड़ों
और रंगीन धागों की कारीगरी
घर में किस जगह रखी है
कोई नहीं बता पाता
खजूर के पत्तों में बसे
ठंडी हवा के झोंके
किस कोने में पड़े हैं घर के
पर ज्यों ही मौसम की देह
दहकना शुरू होती है
वह इन्हें बाहर निकालती है
और कहती है
क्या भरोसा बिजली का