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बीज, जिसको अभी उगना है / देवनीत / जगजीत सिद्धू

भगत सिंह,
नौजवान है सरफिरा,
जज़्बाती है, गर्म-ख़ून है,
जोश के पास होश कहाँ,
हक़ीकत नहीं पहचानते बच्चे
बस, ज़िद पकड लेते हैं ....
ये टिप्पणियाँ थी गरज़परस्तो की ....

ये नहीं कि वे नहीं जानते,
भगत सिंह किस बात का नाम है
जानते हैं .... डर जाते हैं
सोचते तो हैं ... बोलते नहीं
उनको पता है, बोले तो :
इतने बड़े राष्ट्र का बापू कौन बनेगा
चाचा के बिना रह जाएगा भारत,
गुलाब के फूल .. कोट की जेब में नहीं,
मज़दूरों की मुस्कान में खिलेगे
उनकी ज़रूरत है
 
कानपुरी चप्पलों के तले
नहीं उगने देना वो बीज
अंकुरित है जो
भगत सिंह के अन्दर

गोल-गोल घूमती तकली की
सफल चाल पर
धरती रो पड़ी ..

भगत सिंह धरती को,
नतमस्तक हुआ —
" हे माँ ! बीज है हरी कायम* ,
जरूर कभी खिलेगा ,
तेरे अन्दर ...!"


  • हरी कायम - सदा हरा-भरा रहने वाला



मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : जगजीत सिद्धू