बीज-संवेदन- 8 / शेषनाथ प्रसाद श्रीवास्तव
आज मेरा स्व
मुझसे टकरा गया
मुझे लगा
एक अग्नि का गोला
मुझसे छू गया है
कुछ पल के लिए
मैं अपार उर्जा से भर गया
स्फूर्ति ताजगी और संकल्प
मेरे पहलू में उॅड़ल गए
मेरा समूचा अस्तित्व
टटके फूलों के आविर्भावों से
भर गया.
बड़ा प्यारा था वह क्षण
अपने को करीब पाकर
थोड़ी देर के लिए मैं निहाल हो गया
अब मैं
अपने गिर्द के सारे लोगों के
करीब हो गया था
मैं सारे निसर्ग के प्रति
आपाद प्रेम से भर गया
यह दुनिया
मेरे ‘मैं’ और मेरे स्व के
दो पाटों के बीच बह रही थी
और मैं किनारे बैठा
उसकी उभरती मिटती
तरंगों के उभारों से
अपने आपको बुनने लगा था.