भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीता भादौं गा कुवार / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
बीता भादौं गा कुवार।
छैला भये हुसियार॥
होइहैं कोठरी म जकड़ा किवाड़ मोरे राम।
आवा हथिया के पेटवा से जाड़ मोरे राम॥
घर मा कत्थर गुद्दर सोवें।
बइठा मरजादी जी रोवैं॥
कांपै जड़वा से थर थर हाड़ मोरे राम।
आवा हथिया के पेटवा से जाड़ मोरे राम॥
चन्दा मामा लागै नीक।
सायर चले छाड़ि के लीक॥
लागै मघवा म रतिया पहाड़ मोरे राम।
आवा हथिया के पेटवा से जाड़ मोरे राम॥
गवा जड़वा खराय।
कीरा बीछी गे लुकाय॥
भागै बछिया सतावे मुआ सांड़ मोरे राम।
आवा हथिया के पेटवा से जाड़ मोरे राम॥