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बीत गए ग्यारह मास, पिया! (चैती)/ गुलाब खंडेलवाल


बीत गए ग्यारह मास, पिया! अब फागुन न बीते
जेठ भी बीता, आसाढ़ भी बीता, पूस के गए हैं दिन ख़ास
पिया! अब फागुन न बीते 
 
फूले कचनार, पलाश भी फूले
रंग गुलाब के आँखों में झूले
महुआ की महक उदास
पिया! अब फागुन न बीते
 
चली पुरवैया अबीर उड़ाती
बाग़ में कोयल है धूम मचाती
सरसों ने रच दिया रास
पिया! अब फागुन न बीते
 
अबकी मिलोगे तो जाने न दूँगी
प्यार के रंग में तन-मन रँगूँगी
कह दूँगी कानों के पास--
पिया! अब फागुन न बीते

बीत गए ग्यारह मास, पिया! अब फागुन न बीते
जेठ भी बीता, आसाढ़ भी बीता, पूस के गए हैं दिन ख़ास
पिया! अब फागुन न बीते