बीत गया दिन आई शाम! / शम्भुनाथ तिवारी
बीत गया दिन आई शाम!
धीरे-धीरे सिमट रही है,
पश्चिम में पूरब की लाली।
झुंड – झुंड चिड़ियाँ बैठी हैं,
पेड़ों की हर डाली – डाली।
सारे दिन के कोलाहल से,
करना है कुछ तो आराम।
बीत गया दिन आई शाम!
सूरज छोड़ रहा धरती पर,
अपनी अंतिम लाल निसानी।
घोल दिया सिंदूर किसी ने,
ऐसा लगे ताल का पानी।
कमल-कोष में बंद रात भर,
भँवरे कर लेंगे विश्राम।
बीत गया दिन आई शाम!
गायें लौट रही हैं घर को,
बछड़े टक-टक ताक रहे हैं।
बच्चे खड़े – खड़े खिड़की से,
दूर – दूर तक झाँक रहे हैं।
अब तक आए नहीं पिता जी,
जाने उलझ गए किस काम।
बीत गया दिन आई शाम!
मौसम से अठखेली करते,
शीतल –मंद हवा के झोंके।
मचल रहा मन बाहर घूमें,
घर में कौन रुका है रोके।
बच्चे निकल पड़े सड़कों पर,
दादा जी की उँगली थाम।
बीत गया दिन आई शाम!
भाग-दौड़ के इस जीवन में,
सबकी अपनी राम –कहानी।
चैन किसी को कैसे मिलता,
अगर न होती शाम सुहानी।
शाम हुई घर जल्दी जाना,
निपटाकर सब अपने काम।
बीत गया दिन आई शाम!!