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बीत जाने के बाद / लीना मल्होत्रा

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आज तुम लौट आए हो
मेरे हाथों में कोई कम्पन नही
न ही दृष्टि में नमी
दिल की धड़कन भी पगलाई सी नही छूट कर भागी

साफ़ साफ़ देख पा रही हूँ तुम्हे
वैसे नही जैसे मैं देखना चाहती हूँ बल्कि वैसे जैसे कि तुम हो

सोच रही हूँ की ऐसा क्या है तुममे जो
मैं दाँव पर लगा दूँ अपना जीवन

कैसे एक चित्र में जड़ हो गई थी मैं तुम्हारे साथ
भविष्य के एक टापू पर
जहाँ हम दोनों साथ रहते थे
उस पर आकाश से उतरी उस इकलौती नाव में हम घूमते थे
और मैं अकेली
अकेले तट पर बैठकर करती थी प्रतीक्षा
और उस सपने को रोज़ देख देख कर भी मैं कभी बोर नही हुई

अब आए हो तो रुको
एक कप चाय पीकर जाना
अभी भी चाय में खौलता है पानी का पाग़लपन
नहीं यह प्रेम का नहीं आँच का दोष है
तब भी उसी का दोष था

आहा ! मुझे तुमसे नही
उन दिनों से प्रेम था
बहने से प्रेम था उड़ने से प्रेम था डूब जाने से प्रेम था
नहीं स्वीकारना नहीं चाहती थी
तुम न आते तो क्या ही अच्छा था