बीत लेॅ बात / कस्तूरी झा 'कोकिल'
नया पुरानोॅ कथा कहानी रही-रही केॅ आबै छै।
केकरा छोड़ियै, केकरा लिखियै यहॅ समय नै पाबैछै।
दुःख में सुख में साथी हरदम
कदम मिलाय के चल्ली छै।
घोर विपत में हिम्मत भरिकेॅ
होलै जीत मचली छै।
स्वाभिमान केॅ रक्षा खातिर सब दिन जान लगैनैं छै।
दुर्गा काली समय-समय पर राक्षस अजी भगैनैं छै।
केनाँ भूलैइयै ई रंग पत्नी
सोची समझी बोले नीं
तनसें, मन सें आरो लगन सें
दिल केॅ बतिया खोलॅ नीं।
इंतजार के बाद मिलन में बेहद मौज मनैंने छै।
स्वाभिमान केॅ रक्षा खातिर सब दिन जान लगैनैं छै।
सहन शीन नोॅन भारै वाली
झगड़ा झॉटी से बड़ी दूर
ममता प्यार लुटाबै वाली।
जन-जन केॅ ऑखीरेॅ नूर।
तड़क भड़क हुनखा नें नीकेॅ सादा समय बितैनैं छै।
स्वाभिमान केॅ रक्षा खातिर सब दिन जान लगैनैं छै।
भाग्यवान ऊ नर दुनिया में
जेकर ऐहनों नारी छै।
आपतकाल परीक्षा जीत लै,
पति रेॅ प्राण पियारी छै।
पुरजन परिजन याद कहै छै कहाँ कोय भूलैने छै?
स्वाभिमान केॅ रक्षा खातिर सब दिन जान लगैनैं छै।
14/04/15 सतुआनी, वैशाखी सायं 5 बजे