भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीनाओं को पलकों से हटाने की पड़ी है / शहाब सफ़दर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीनाओं को पलकों से हटाने की पड़ी है
शहकार पे जो गर्द ज़माने की पड़ी है

आसाँ हुआ सच कहना तो बोलेगा मुअरिख़
फ़िलहाल उसे जान बचाने की पड़ी है

छोटा सा परिंदा है मगर सई तो देखो
जंगल से बड़ी आग बुझाने की पड़ी है

छलनी हुआ जाता है इधर अपना कलेजा
यारों को उधर ठीक निशाने की पड़ी है

हालात ‘शहाब’ आँख उठाने कीनहीं देते
बच्चों को मगर ईद मनाने की पड़ी है