भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीमारी / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
तुमने मुझे मारा
जैसे घूंसे बरसा रहे हो दीवार पर
स्त्री तुम्हारी गुफ़ा नहीं
कि जब मन करे
आकर लेट जाओ
तुम उस पर चढ़ नहीं सकते
गिलहरी की तरह
अपना अमृत नहीं
बल्कि अपना मूत्र
वह उड़ेलता है भीतर
वह प्रेम करता है
जैसे वह कोई दरख़्त हिला रहा हो
पुरुषत्व
एक गम्भीर बीमारी है ।