मैं अपना हाथ 
बढ़ाता हूँ 
उसके ख़त की तरफ़ 
और फिर वापिस खींच लेता हूँ 
उसका ख़त 
तप रहा है 
ठीक उसके माथे की तरह !
(रचनाकाल: 2016)
मैं अपना हाथ 
बढ़ाता हूँ 
उसके ख़त की तरफ़ 
और फिर वापिस खींच लेता हूँ 
उसका ख़त 
तप रहा है 
ठीक उसके माथे की तरह !
(रचनाकाल: 2016)