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बीमार हैं तो अब दम-ए-ईशा कहाँ से आए / किश्वर नाहिद

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बीमार हैं तो अब दम-ए-ईसा कहाँ से आए
उस दिल में दर्द-ए-शौक़-ओ-तमन्ना कहाँ से आए

बेकार शरा-ए-लफ्ज़-ओ-मानी से फायदा
जब तू नहीं तो शहर में तुझ सा कहाँ से आए

हर चश्म संग-ए-खीज़्ब-ओ-अदावत से सुर्ख़ है
अब आदमी को ज़िंदगी करना कहाँ से आए

वहशत हवस की चाट गई ख़ाक-ए-ज़िस्म को
बे-दर घरों शक़्ल का साया कहाँ से आए

जड़ से उखड़ गये तो बदलती रुतों से क्या
बे-आब आइनों में सरापा कहाँ से आए

सायो पे ऐतमाद से उकता गया है जी
तूफ़ाँ में ज़िंदग़ी का भरोसा कहाँ से आए

गम के थपेरे ले गये नागिन से लंबे बाल
रातों में जंगलों का वो साया कहाँ से आए

'नाहिद' फैशनों ने छुपाए है ऐब भी
चश्में न हो तो आँख का परदा कहाँ से आए