भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीमार / देवेन्द्र रिणवा
Kavita Kosh से
रात एक लम्बी जेल
सज़ा
नींद का न आना
ऐसे में
धीरे से बदलना करवट
दर्द को जज़्ब कर जाना
रोक देना कराह को
होठों की सीमा के अन्दर
दबे पाँव उठकर
पी लेना पानी
कि सोया है पास कोई
खलल न हो
बीमारी से ग्रस्त
आदमी के भीतर
है कोई
जो बीमार नहीं है