बीर अभिमन्यु की लपालप कृपान बक्र,
सक्र-असनी लौं चक्रव्यूह माहिं चमकी।
कहै 'रतनाकर' न ढालनि पै खालनि पै,
झिलिम झपालनि पै क्यों कँ ठमकी॥
आई कंध पै तो बाँटि बंध प्रतिबंध सबै,
काटि काटि संधि लौं जनेवा ताकि तमकी।
सीस पै परी तौ कुंड काटि मुंड काटि फेरि,
रुंड के मुखंड कै धरा पै आनि धमकी॥