बीस बरस बाद / शिव किशोर तिवारी / जीवनानंद दास
फिर बीस बरस बाद उससे भेंट हो अगर
फिर बीस बरस बाद —
शायद खेत में धान की क़तारों के पास
कार्तिक मास में —
तब साँझ के काग लौट रहे घर —
तब पीली नदी काँस, सरपत और ऊँची घास के बीच मृदु — मैदानों में ।
अथवा, धान नहीं अब खेतों में,
न कोई दौड़-भाग,
हंस के घोंसले के तिनके
चिड़िया के घोंसले के तिनके
खिसककर गिर रहे हैं;
मुनिया पाखी के घर रात, शीत और ओस का पानी।
बीस बरस जीवन जब कर चुकें अतिवाह
मिल जाओ सहसा खेतों से गुज़रती राह!
शायद चाँद आया है आधी रात, ढेर पत्तों के पीछे
पतली, काली टहनियाँ उसके मुख पर,
शिरीष की, जामुन की,
झाऊ की, आम की;
बीस बरस बाद, तब भूल गया हूँ तुम्हें!
बीस-बीस साल पार हो आएँ हमारे जीवन
तब हो फिर एक बार मेरा-तुम्हारा मिलन !
उस समय शायद एक उल्लू खेत में उतर
दो क़दम चला है —
बबूल की गली के अँधेरे में
पीपल की खिड़की के बीच से
कहीं छुपा लिया है ख़ुद को।
कहीं उतरे हैं चील के पंख, आँख की पलक-से ख़ामोश।
सोने जैसी चील — उसे बझा ले गया है शिशिर,
बीस बरस बाद उसी कुहासे में यदि पाऊँ
तुम्हें फिर
जीवनानंद दास की कविता कुड़ि बछर परे (কুড়ি বছর পরে) का
शिव किशोर तिवारी द्वाराम मूल बांग्ला से अनूदित
और लीजिए अब पढ़िए मूल बांग्ला कविता
কুড়ি বছর পরে
- জীবনানন্দ দাশ---বনলতা সেন
আবার বছর কুড়ি পরে তার সাথে দেখা হয় যদি!
আবার বছর কুড়ি পরে-
হয়তো ধানের ছড়ার পাশে
কার্তিকের মাসে-
তখন সন্ধ্যার কাক ঘরে ফেরে-তখন হলুদ নদী
নরম নরম হয় শর কাশ হোগলায়-মাঠের ভিতরে!
অথবা নাইকো ধান ক্ষেতে আর,
ব্যস্ততা নাইকো আর,
হাঁসের নীড়ের থেকে খড়
পাখির নীড়ের থেকে খড়
ছড়াতেছে; মনিয়ার ঘরে রাত, শীত আর শিশিরের জল!
জীবন গিয়েছে চলে আমাদের কুড়ি কুড়ি বছরের পার-
তখন হঠাৎ যদি মেঠো পথে পাই আমি তোমারে আবার!
হয়তো এসেছে চাঁদ মাঝরাতে একরাশ পাতার পিছনে
সরু সরু কালো কালো ডালপালা মুখে নিয়ে তার,
শিরীষের অথবা জামের,
ঝাউয়ের-আমের;
কুড়ি বছরের পরে তখন তোমারে নাই মনে!
জীবন গিয়েছে চলে আমাদের কুড়ি কুড়ি বছরের পার-
তখন আবার যদি দেখা হয় তোমার আমার!
তখন হয়তো মাঠে হামাগুড়ি দিয়ে পেঁচা নামে
বাবলার গলির অন্ধকারে
অশথের জানালার ফাঁকে
কোথায় লুকায় আপনাকে!
চোখের পাতার মতো নেমে চুপি চিলের ডানা থামে-
সোনালি সোনালি চিল-শিশির শিকার করে নিয়ে গেছে তারে-
কুড়ি বছরের পরে সেই কুয়াশায় পাই যদি হঠাৎ তোমারে !