भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीस साल की लड़की / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
बीस साल की लड़की
अपने घर में ऐसे रहती है, जैसे हो मेहमान
फोन की घंटी बजती है, नहीं उठाती
दरवाजे के बुलाने पर भी बनी रहती है बुत
छोटा भाई भूखा है, नहीं खिलाती
नींद आ रही है, नहीं सुलाती
रूठता, नहीं मनाती
रबर-पेंसिल खोता, खोने देती
परीक्षा है, नहीं पढ़ाती
शैतानी करता, थप्पड़ जड़ती
बहन रोती, रोने देती
माँ के कहने को भी नहीं सुनती
जाने कहाँ खोई रहती है
इस तरह घर को नजरअंदाज करती
बौराई-सी रहती है
बीस साल की लड़की
असल में लड़की बहन-बेटी रो रही है
घर वाले समझ नहीं पा रहे
कि लड़की में से लड़की खो रही है
पता ही नहीं लगता
कि कब जग रही है और कब सो रही है
वह भीतर चोरी-चुपके सपने बो रही है
कोई उसका वह किसी की हो रही है
बीस साल की लड़की।