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बीहड़ / नरेन्द्र कुमार
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इन दिनों...
मेरे अंदर भी
एक बीहड़ पल रहा है
घुप्प अंधेरा
घुस सको तो आ जाओ
कीचड़ सनी झाड़ियों के पार
पेड़ों के झुरमुटों में
चहचहाती चिड़ियों के पास
कल-कल करती नदियाँ मिलेंगी
हरे-भरे पहाड़ भी
प्यार और उसकी स्मृतियाँ
सभी मिलेंगी
पर आना होगा
उन्हीं रास्तों से
जिन्हें खोल रखा है
तुम्हारे ख़ातिर