भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुख़ार / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज




मेरी नींद में अपना गरम थूथन डाले

पानी पीती थी एक भैंस ।


मैं पकता

हवा से सिहरते गेहूँ की तरह

धूप के खेत में ।

नींद सा कुछ दबाता

पलकों को


कलेजे को दबाती

एक मसोस ।