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बुजुर्ग विधवा / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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सास बहू में जहाँ प्रेम छै
वू तैॅ किस्मत वाली छै।
नैं तेॅ भारी गंजन लिखलॅ
अगर जों दुर्गा काली छै।
बिना बूढ़ा केॅ बुढ़िया मुर्दा,
बिन पानी केॅ नदियां छै।
तुलसी बाबा कहैनें छथिन
सदा सत्य ई बतिया छै।
बेटाँ विदेश में मौज करै छै
घोॅर में बुढ़िया हुॅकरै छै।
चुल्हा केॅ माटी निंगली केॅ
खून दनादन बोकरै छै।
घोलटी घालटी प्राण गमायछै
कहाँ कोय देखबैइया जी?
गीदड़, कुत्ता, कौआ धोॅर में
नाँच रंग बधैइया जी।
बेटा वहू साथ जेकरॅ छै
ओकरोॅ अलग रबैइया जी।
बचलेॅ खुचलेॅ खाय लेल दै छै।
टूट लेॅ टाटलॅ खटिया जी।
ढीलॅ ढालॅ केॅ हेरै छै?
कौनेॅ देतै तेल जी?
नहाय-धोय से की मतलब छै।
नया-नया नित खेलजी।
भारत में विधवा केॅ हालत
भरलॅ करुण कहानी छै।
आगू कुआँ, पीछू खाई
विधवांतेॅ वलिदानी छै।

17/07/15 सायं 6.50