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बुझता हुया चिराग ये बता गया मुझे / हरकीरत हीर
Kavita Kosh से
बुझता हुया चिराग ये बता गया मुझे
लड़ना ही ज़िंदगी है वो सिखा गया मुझे
यादें न आज तक कभी मिटा सकी मैं क्यूँ
वो जाने किस तरह से, यूँ भुला गया मुझे
इक आरजू रही कि मिल सकूँ मैं आपसे
बस इंतज़ार आपका, थका गया मुझे
थी ग़मज़दा बड़ी ये रात बेकरार सी
लो फ़िर ख़याल आपका हँसा गया मुझे
वो करवटें, वो बेकसी, वो बेकली, सभी
बेचैनियों का राज़ दिल, बता गया मुझे
शेरोसुख़न में' बात दिल की आप कह गये
अंदाज़ आपका यही तो भा गया मुझे
वो आके ज़िंदगी में, 'हीर' यूँ समा गया
यादों की कैद से रिहा करा गया मुझे