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बुझता हो जीवन प्रदीप का / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
बुझता हो जीवन प्रदीप जब
उसको मदिरा से भरना,
मृत्यु स्पर्श से मुरझाए
पलकों को मधु से तर करना!
द्राक्षा दल का अंगराग मल
ताप विकल तन का हरना,
स्वप्निल अंगूरी छाया में
क़ब्र बना, मुझको धरना!