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बुझी कब प्यास है सूखी नदी से / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
बुझी कब प्यास है सूखी नदी से
हलक चुभने लगे हैं तिश्निगी से
असर झेले बिना इंसान कैसे
गुज़र जाये मुहब्बत की गली से
अँधेरा ढाँक लेता हर बुराई
सभी डरने लगे हैं रौशनी से
मिला जिसको समन्दर का इशारा
हुआ सन्तुष्ट कब छिछली नदी से
नज़र उम्मीद से रौशन है जिसकी
डरेगा किसलिये वह तीरगी से
कभी जब याद आयेगी हमारी
तड़प जायेगा दिल भी बेबसी से
चलो अब तो मिला लो हाथ साथी
बहुत दिल थक चुका है दुश्मनी से