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बुझे चराग़ को कोई हवा नही देता / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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बुझे चराग़ को कोई हवा नही देता
मेरा सफ़र ही मुझे रास्ता नही देता
अभी तलक तेरी यादों के साये हैं मुझ पर
मैं सोचता हूँ तुझे क्यों भुला नही देता
सज़ा-ए-मौत भी अच्छी है तेरे हिज्र से तो
मैं दुश्मनों को भी ऐसी सज़ा नही देता
जो खूब शोर मचाता था मुझ में ही पहले,
अजब सितम है कि वो अब सदा नही देता
तमाम उम्र रहा ज़िन्दगी से इक शिकवा
जो होता बस में तो ख़ुद को मिटा नही देता।