बुढ़बाक कका / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
1
बस लहरि एक,
बस पहर एक,
बसि गेल बृद्ध केर सूटकेश मे
छोट छीन बस शहर एक॥
2
मन मे उमंग,
मन मे तरंग,
मन पर अन-मन मनहर सन मन
किछु चढ़ा देल नुतने रंग॥
3
अन्तर आकुल,
बाहर आकुल,
आकुलि रोमावलि, स्वेदक कण-
बन बन मुख पर, भ्रु पर आकुल॥
4
अन्तर हुलास,
अन्तर प्रकाश,
अन्तर में गोड़ल एक आश
अवशिष्ट शुद्ध बस एक मास॥
5
नव युगक युवक,
नव युगक युवक,
बस वृद्ध बदन्तक आगाँ मे
रहला सब दिन बुड़िबके युवक॥
6
करता विआह,
मुँह जाबि, वाह!
जे नहिं कहता, से व्यर्थ व्यर्थ
सब दिन हैबे करता तबाह॥
7
दस बीस टका,
बुढबोक कका,
किछु पैंच खोंइच कै लै आनल
जनिका टुटैत छल मँड़सटका॥
8
आयल से दिन,
लायल से दिन,
सौभग्यक रथ पर स्वर्ण ध्वजा
जा पुनि पुनि फहरायल से दिन॥
9
दू दिन विशेष,
रहि गेल शेष,
‘‘सारदा एक्ट’8 केर नाम सूनि
वृद्धक फाटै लागत कुहेस॥
10
किछु रहि रहि कै,
किछु सहि सहि कै,
निज हित अपेक्षितक आगाँ मे
लागै बुकौर किछु कहि कहि कै॥
11
‘‘परिवार हमर,
संसार हमर,
सब उजड़ि गेल जौं सत्य थीक
‘‘सारदा एक्ट’’ कप्पार हमर॥’’
12
मरि गेलहुँ हाय!
जरि गेलहुँ हाय!
लाजक खत्ता मे लै विआह केर
नॉव व्यर्थ गड़ि गेलहुँ हाय॥
13
जे छल टोलक,
अपना गोलक,
जकरा रहैत छल काज सतत
अनकर भितरी भिट्ठी फोलक॥
14
सब आबि गेल,
बस, पाबि गेल,
ढ़ा केँ अपनैतीक कथा सँ
चारू दिस सँ दाबि देल॥
15
औ पून कका!
कहलक बड़का,
छल धर्त, धरू भरना जमीन
लै चलू हजारे संग टका।
16
होयत सब टा,
ई सब हम टा-
कै देव बीच सौराठे मे-
के मर्द एहन? बाजत नङटा॥
17
की सुनइ छिअइ?
की जनइ छिअइ?
हमरो सब तँऽ दिन गति कका-
एकबारे टा केँ धुनइ छिअइ॥
18
जौं हेतइ खबरि-
तँऽ जेबइ ससरि,
हाकिमक हाथ दस बीस टका-
दै, ओकरहि लग मे जेबइ नमरि॥
19
तेँ की विवाह-
नहिं हैत? वाह!
से की कहैत छी? आगि देखौने
कत्तहु नहिं नमरैक लाह॥
20
अपना गट्टिक,
अपना पट्टिक
सब चलल धोआ धोती कुर्त्ता
बृद्धक फूजल कर पनवट्टिक॥
21
जाजिम मसनद,
सब छल गदमद,
ललका धोती पर मैल पाग
दै चलला वृद्ध बनल लदफद॥
22
हम सब जा’ छी
‘‘तावत गाछी,’’-
कहि कहि हकमथि, चंचलता छल
बस नाक परक जहिना माछी॥
23
छौंड़ा दशटा
जे छल नङटा
रस्ते सँऽ हुनका कच कचाय
अन्तिम मे फाड़ि देलक दोपटा॥
24
बस बिगड़लाह
बस तड़पलाह
थर थर कपैत क्रोधें बूढ़ा
मधुबनी सड़क पर पहुँचलाह॥
25
जा कै बजार
सङ लै भजार
नबका दोपटा किनबाक हेतु
फोलल मोटरी बान्हल हजार॥
26
कीनल रूमाल
चमकैत लाल
दै जेबी मे ओटोक कार्ड
मिर्जइ गम गम, बूढ़ा कमाल॥
27
पुनि कैल ध्यान
पागो पुरान,
लै कोकटीक सीटल नवीन
कै कल्ला तर खिल्ली चलान॥
28
एक्का पर चढ़ि,
बाजथि गढ़ि गढ़ि,
चललाह सभा सौराठक दिश
‘‘ओं गणनान्त्वा गणपति’’ पढ़ि॥
29
बूढ़ा पाठक-
पुरना ठाठक,
भलामानुस गट्टी सब चिन्हैत-
छलथिन्ह बासिन्दा सौराठक॥
30
सब घटक राज
बुढ़वा समाज
बेङन ठाकुर, फेकन चौधरि,
घुटरू झा जनिकर आर्त्तकाज॥
31
सब पहुँचलाह
बैसइ गेलाह
बेङन ठाकुर केर लक्षण बस
हमरा गामक डोमा मलाह॥
32
नासिकानन्द
जे छलइ बन्द-
नोसिआनी मे, चुटकी भरि भरि
पूड़ा मैं दै दै, भै बुलन्द॥
33
किछु कै निश्चय
पूछल परिचय
गाछीक रंग किछु गरम देखि
बूढ़ा लगला मद मे फूलय॥
33
किछु छला व्यस्त
घुटरू, प्रशस्त
पाँजिक बड़का व्यापक छलाह
सम्पत्तिक धरि कनिये सिकस्त॥
34
घुमनाइ व्यर्थ
होइतनि अनर्थ
जौं कतहु कदाचित नहि पटितनि
कन्या छलथिन्ह बढ़िया समर्थ
36
पढ़ु आ बाबा
‘‘ननु नच किंवा-’’
मे लागल छला, छलनि हुनको
पंजी बद्धक बड़का दाबा॥
37
मुठभेड़ भेल
सब कड़कि गेल
घुटरू जौं करता एहन काज
तँऽ पड़त समाजो मे झमेल॥
38
पठिहारक जड़ि
जौं हेतइ खबरि,
भलमानुस सब कुचड़त मिलमिलि
की मूड़ी गाड़ब हम सबतरि?॥
39
व्यापक धरि घर
सब दिन हिनकर,
राँटी, मङरौनी, पिखवाड़,
कुटमैती सब हिनकर सुन्दर॥
40
चारिम विवाह
कैने छलाह
टाका बारह सै, ताहू पर
व्यवहार, भार मे भै बताह
41
दू सै गनलनि
अपनहिं कहलनि
भलमानुस सँऽ सम्बन्ध भेलनि
तैं फज्झति गारि सेहो सहलनि॥
42
छथि अठकपारि
की हड़ संघारि
जे कहिअनि, सब छथि, वर्षहि-
दिनमे हुनको देलथिन्ह फेर मारि॥
43
बुधियार परम
फेकरन, अनुपम
सोचल बिचार पढुआ बाबा केँ
बात करौलक ई हृद्गम॥
44
किछु घूस घास
चालिस पचास
जौं भेटि जाय तँ क्षतिए की?
हमरा सब केँ तँ यैह आश॥
45
अपने करबई
नौ सै धरबइ
पहिने, आखिर मे सातो सै धरि
हैत काज अपने पड़बइ॥
46
टाकाक गन्ध-
ओ पाबि, अन्ध
भै गेला, बेचारे घुटरू केँ
बजवाय कहलथिन्ह ई समन्ध -
47
कै लैह अवश
नहि हेतह अयश
सुख दुखतँ अपना कैन की
होइत छइ? जे छइ विधिना वश॥
48
ओ दिन बीतल
फेकन जीतल
बेङन नाङड़ि केँ सुट पुटाय
‘‘घूमथि बिलाड़ि जहिना तीतल’’॥
49
बस भेल प्रात
उनटल बसात
लहलनि फेकन चौधरिक हाथ
जारी कैलनि पुनि अवरजात॥
50
पहुँचल घुमैत
देखल अवैत
बूढ़ा पाठक अगराय गेला
कर्मो छलैनि छुतहड़ अपैत॥
51
बस चारि सयक
फिरहिस्त व्ययक
फेकन चौधरि त्रेर आगाँ मे
दै देल बासठिम वर्ष वयक॥
52
फेकन सुनि कै
मन मे गुनि कै
पढ़आ बाबाक बिचार सुना देहथिन
रहि कै, किछु गुनि धुनि कै॥
53
मुँह भेल ताम
नौ सैक नाम
सुनि मुँह बनौलनि पाठकजी
‘‘अनमन जहिना कनहा लताम’’॥
54
छल ताबत तक
फेकन टक टक-
तकिते बूढ़ाक मुखकृति पुनि
बजला बूढ़ा- बुड़िलोल घटक-
55
नौ सै लेताह
हम छी बताह
आ’’ की ऐलहुँ अछि गाछी मे
करबा लै हम पहिले बिआह॥
56
फेकन बिगड़ल
क्रोधें तड़पल
किछु बातचीत मे छत्ता पर छत्ता-
कड़कल हल्ला बजरल॥
57
ऊठल हल्ला,
पसरल हल्ला,
गाछी हलचल, पँजिआड़ व्यस्त,
बनिया कौन लुटलक गल्ला॥
58
छल चायि एक
ओकरा कनेक
भै गेलइ भान मधुबनिये मे
छल बूढ़ा लग टाका जतेक॥
59
ता, साँझ भेल
पसरल झमेंल
हुल्लड़बाजी मे बूढ़ा के ओ चायि
आबि देलक धकेल॥
60
खसिते चितंग
मन भेल तंग
भै गेल मनोरथ सब विलीन
क्षण भरि मे रंगक संग संग
61
धैने पछोड़
कैलक नछोड़
वृद्धक बटुआ कै देलक पार
बूड़ा केँ सुझितो छलनि थोड़॥
62
पुनि भेल शान्त
गाछीक प्रान्त
ढट्ठा बटुआ सँ शून्य देखि
बूढ़ाक हृदय भेलन्हि अशान्त॥
63
एमहर तकलनि
ओमहर तकलनि
गाछी केँ कण कण तकलन्हि
जेबी तकलहि, पेटी तकलन्हि॥
64
सब छल अबाक
सब छल फराक
अन्तिम मे बूढ़ा बाप बाप कहि
मारल कसि कै डबल हाक॥
65
लुलुआयल सन
बिधुआयल सन
मुखड़ा छल काँचे बाँसक ओ
‘‘चोटकलहा पोर सुखयल सन’’॥
66
छल मनक भाव
हर्षक अभाव
से हम की लिखब, बुझव पाठक!
अपने अपने बुद्धिक प्रभाव॥
67
खन सिठ्ठी, खन-
दलिपिट्ठी सन,
मूँहक मुद्रा बदलैत रहल
काँचे तेतरिक खटमिट्ठी सन॥