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बुढ़ापा रॅ बुढ़िया / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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चौथा पनकेॅ पत्नी भैया।
अंधा रॅ लाठी।
चौबीस घंटा केॅ रहतै हो?
बेटा, पोता, नाँती!
सबकेॅ आपनौह काम बहुत छै।
बुढ़बा लोगॅ केॅ रहतै!
खोजतै केवल माल खजाना
खैतै केवल माल खजाना
खैतै मौज मनैतै।
पुत्रवधू सतयुगिया केॅ गो?
केॅगों बेटा श्रवण कुमार?
झाँपी तोपी केॅ नैं बोलॅ
देखॅ कलियुगिया व्यवहार।
चलतें फिरतें जे टुनकै छै
ओकरेॅ भाग्य निराला।
बाँकी केॅ भगवानें मालिक
आँख बन्द मुँह पर ताला।
स्वर्गारोहण सुहागिनी केॅ
मत पूछॅ कुछ भैया।
भाग्य सितारा चकमक ओकर।
बुढ़बा के डुबलै नैया।
भोज भात अंगरेजी बाजा,
पूड़ी लड्डू खाजा।
चहल पहल दिन रात वहाँ पर
भीड़ भाड़ दरबाजा।
आंगत स्वागत आलादरजा
यथा योग सम्मान।
युवा वर्ग केॅ ज्ञान देहोॅ हे
दीनबंधु भगवान।

17/07/15 सायं 4.20