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बुढ़ापा / राज मोहन
Kavita Kosh से
एक गिलास चाय दुइगो बिस्कुट
और चार रकम की गोली
चिन्ता के पेड़ की ऊँची डारी पे
लटकल है बुढ़ापा
सूखल सूरत के नस-नस पर लिखल
जवानी के बीतल बात
फँसल कन्धा, गाँठी के पीड़ा
होस करवावे है पहले के जागर
बहल पसीना धान के खेत में
जमा करल तागत
पढ़ाई में लड़कन के
झुलावे है धीरे धारे कैसे
ओहे कुरसी
डाम के खिड़की के कैती
दिन भर झाँकिला बाहरे
अपन जिनगी
काल के कुछ बचल लहा
आज न पकइली
केसे उँघाए लगी
कुछ एइसन न करली
के तनी थकाई लगत
कोसिस में लगल वा
बचल दिन
खरा करे खात
गिरल दिन अपन दुनो गोर पे
बकायनया हींचत
हाथ पे
ना दारू ना तमाखू
ना जादा ना मीइा
और नमक एकदम कमती
अब जिनगी में सवाद ना रहिगे
एक गिलास चाय दुइगो बिस्कुट
दस रकम दवाई के बीचे
अँटकल है बुढ़ापा।