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बुढ़िया / पदुमलाल पन्नालाल बख्शी
Kavita Kosh से
बुढ़िया चला रही थी चक्की,
पूरे साठ वर्ष की पक्की।
दोने में थी रखी मिठाई,
उस पर उड़कर मक्खी आई।
बुढ़िया बाँस उठाकर दौड़ी,
बिल्ली खाने लगी पकौड़ी।
झपटी बुढ़िया घर के अंदर,
कुत्ता भागा रोटी लेकर।
बुढ़िया तब फिर निकली बाहर,
बकरा घुसा तुरत ही भीतर।
बुढ़िया चली, गिर गया मटका,
तब तक वह बकरा भी सटका।
बुढ़िया बैठ गई तब थककर,
सौंप दिया बिल्ली को ही घर।