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बुत / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
कहते हैं
शरीर नहीं
रहता
पार्थिव है
जल, वायु, व्योम
अग्नि और
मिट्टी से बना है
पर
कहीं न कहीं
एक बुत
रह जाता है
एक अशरीरी
छवि-सा
तुम्हारी प्रकृति
तुम्हारे
आचार विचार
व्यवहार से
लिपा-पुता
किन्हीं
आँखों में…