बुद्ध होना आसान है / संगीता शर्मा अधिकारी
संसार को छोड़कर
आध्यात्म को जीना
कोई उपलब्धि नहीं।
संसार के भीतर रहकर
आध्यात्म को जीना
सही मायनों में महानता है।
अक्सर मन उद्वेलित होता है
इन विचारों से
कैसे - कोई, एक रात अचानक
चल देता है आध्यात्म की राह
अपनी भार्या, अपने दुधमुंहे को छोड़कर
समष्टि का दुख
अपने परिवार को दुख में डालने से
कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया आज !!!!
मेरी नज़रों में ये कायरता है
पलायन है ख़ुद का ख़ुद से।
विमुख होना है अपनी ज़िम्मेदारियों से।
स्थितियों की स्वीकारता ज़रूरी है
आध्यात्म की अनिश्चित राह के आगे।
कठिनाइयों को चुनौतियां समझ
उनसे दो - चार होना ही सही अर्थों में
जीवन जीना है।
उन्हें पीठ दिखाना नहीं।
भागकर गौतम बुद्ध तो हुआ जा सकता है
लेकिन उर्मिला सा साधक नहीं।
हां यही सच है कि
गौतम बुद्ध होना आसान है।