मेरी कविताएँ 
बतियाती मिलेंगी 
वही कहीं धान की बालियों से
दौड़ती हुई लबालब भरे
पानीदार खेतों के मेड़ों पर
कविताएँ बतिया रही 
फूल रहें काँस से
बारिश में भीगी डालियों पर
फिसल रही पानी की बूँदों से
पतली-पतली मोरंग 
की पगडंडियों पर उड़ान 
भर रही थी 
नागरमोथा के पौधों 
से बाल काले करने 
की तरीक़े पूछ रही थी
और पूछ रही थी
आसमान को उजले
करने के तरीक़े
और एक चिड़िया से
सीख रही थी 
घोंसले बुनने के गुर
हवाई जहाज़ की नही
चिड़ियों की जरूरत है
घोंसला बुनने के लिए बुनकरों की
ज़रूरत है॥