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बुनाई का दुख -1 / कमल जीत चौधरी
Kavita Kosh से
रंग-बिरंगे
कच्चे-पक्के
पतले-मोटे
रेशमी सूती धागे लेकर
बुनती हूँ रोज़ अपना आप —
तुम एक ही झटके में
उधेड़ देते हो मुझे
मेरी प्रत्येक बुनाई का अन्तिम सिरा
तुम्हारे पास है ।