बुरे दिनों के कलैण्डरों में / प्रदीप मिश्र

बुरे दिनों के कलैण्डरों में

जिस तरह से
मृत्यु के गर्भ में होता है जीवन
नास्तिक के हृदय में रहती है आस्था

नमक में होती है मिठास
भोजन में होती है भूख
नफरत में होता है प्यार

रेगिस्तान में होती हैं नदियाँ
हिमालय में होता है सागर

उसी तरह से
अच्छे दिनों की तारीख़ें भी होतीं हैं
बुरे दिनों के कलैण्डरों में।

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