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बुरे दिनों में / राजेश कमल
Kavita Kosh से
बहने मुस्कुराना छोड़ देतीं है
उखड़े उखड़े होते है पिता
लड़कियां छत पे नहीं आतीं
और पतंग आसमान में नहीं
बुरे दिनों में
दोस्तों के ख़त नहीं
पड़ोस की लड़की के गाने की आवाज नहीं आती
और इन दिनों
चांदनी रातें भी उमस से भरी होती है
बुरे दिन पहाडों की तरह होते है
इन दिनों सपने भी डरे डरे होते है
और हम
जलते हुए शब्दों की बू में जीते है।
लेकिन
अच्छे दिनों की
कुछ कतरने है हमारे पास
हम सहेज कर रखते है इन कतरनों को
कि बुरे दिन भी महकने लगें
अच्छे दिनों की तरह