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बुरे दिन-2 / कृष्ण कल्पित
Kavita Kosh से
जब अच्छे दिन आ जाएँगे
तब बुरे दिन कहाँ जाएँगे
क्या वे किसानों की तरह पेड़ों से लटककर आत्महत्या कर लेंगे या किसी नदी में डूब जाएँगे या रेल की पटरियों पर कट जाएँगे
नहीं बुरे दिन कहीं नहीं जाएँगे
यहीं रहेंगे हमारे आसपास
अच्छे दिनों के इन्तिज़ार में नुक्कड़ पर ताश खेलते हुए
बुरे दिन ज़िन्दा रहेंगे
पताका बीड़ी पीते हुए
बुरे दिनों के बग़ैर यह दुनिया बरबाद हो जाएगी
लगभग नष्टप्राय लगभग आभाहीन लगभग निष्प्रभ
बुरे दिनों से ही
दुनिया में यह झिलमिल है, अभागो !