बुरे समय / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य
पेड़ कहता है, क्यों उसमें फल नहीं लगे ।
कवि कहता है, उसकी कविता लचर क्यों रही ।
जनरल कहता है, युद्ध में उसकी हार क्यों हुई ।
तस्वीरें, कमज़ोर कैनवस पर बनाई गईं !
अभियानों की रपटें, भुलक्कड़ों को सौंपी गईं !
महान सलीके, जिन्हें किसी ने देखा नहीं !
क्या टूटे हुए फूलदान का पेशाबदान के तौर पर इस्तेमाल किया जाय ?
क्या बेतुकी दुःखान्त कथा को प्रहसन बना दिया जाय ?
क्या बदसूरत हो चुकी प्रेमिका को रसोई में भेज दिया जाय ?
वे धन्य हैं, जो ध्वस्त होते मकानों को छोड़ जाते हैं !
वे धन्य हैं, जो बदहाल दोस्तों के मुँह पर किवाड़ बन्द कर लेते हैं !
वे धन्य हैं, जो असाध्य योजनाओं को भूल जाते हैं !
घर उन पत्थरों से बना, जो मयस्सर थे ।
बलवा उन बलवाइयों से करवाया गया, जो मयस्सर थे ।
तस्वीर उन रंगों से बनाई गई, जो मयस्सर थे ।
जो था, उसे खाया गया ।
ज़रूरतमन्दों के लिये मुहैया कराया गया ।
जो मौजूद थे, उनसे बात की गई ।
उतनी ताक़त, इल्म और हिम्मत के साथ काम किए गए, जो मौजूद थी ।
बेफ़िक्री माफ़ नहीं की जानी है ।
कहीं ज़्यादा मुमकिन था ।
अफ़सोस तो किया ही जाना चाहिए ।
(हाँ, उससे फ़ायदा ही क्या ?)
(1949)
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य