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बुलंदी तू चाहे कहीं पे रखा कर / विकास जोशी
Kavita Kosh से
क्यूं दिल में कुछ अरमान नहीं
क्या पत्थर हो इंसान नहीं
बस तुझसे है हस्ती मेरी
अपनी कोई पहचान नहीं
पिघले अश्कों की गर्मी से
वो मोम हूँ मैं चट्टान नहीं
बातों बातों में सहर हुई
कब आंख लगी फिर ध्यान नहीं
दम लेने दो पल बैठा हूँ
मैं बेहिस हूँ बेजान नहीं
दिल से दिल का ये रस्ता भी
है छोटा पर आसान नहीं
दुनिया ने जितना समझा था
मैं उतना भी नादान नहीं।