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बुलावा / रतन सिंह ढिल्लों

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ग़र ! तूने मुझे बुलावा नहीं भेजा
तो इसका अफ़सोस
तुझे ही होगा
जब तू मुझे न बुलाने के बारे में
दोस्तों से झूठ बोलेगा
कि तूने मुझे क्यों नहीं बुलाया
इसलिए
मैं तेरे जश्न में आकर भी
तुझसे मिलना नहीं चाहता
क्योंकि, तेरी शर्मिंदगी
और तेरी बहानेबाज़ियाँ
मेरे प्यार का हिस्सा नहीं ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला