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बुलावा / सुभाष राय

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आओ, चले आओ
खिड़कियों से उतरती
सुबह की किरन की तरह
मेरी हथेलियों पर पसर जाओ

रूप, गन्ध, स्पर्श, रस में तुम ही तुम
उतर जाओ मेरे भीतर
भर जाओ रोम-रोम में
आओ बिना कोई सवाल किए
किताब के पन्नों की तरह
खुल जाओ अक्षर-अक्षर
उतर जाओ मेरी आँखों में

मैं आ रहा हूँ, आओ तुम भी
जल में जल की तरह
पसर जाएँ हम-तुम
सागरवत, अन्तहीन, एकाकार