भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुल्ले शाह की सीहरफी - 3 / बुल्ले शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलफ - आँवदिआँ तों मैं सदकड़े हाँ,
जीम जानदिआँ तों सिर वारनी हाँ।
मिठी प्रीत अनोखड़ी लग्ग रही,
घड़ी पल ना यार सहारनी हाँ।
केहे हड्ड तकादड़े<ref>देखना</ref> पए मैनूँ,
औसिआँ पावन्दी काग उडारनी हाँ।
बुल्ला सहु ते कमली मैं होई,
सुत्ती बैठी मैं यार पुकारनी हाँ।

बे - बाज ना औन्दिआँ अक्खिआँ नी,
किते ओहलड़े बैह समझावनी हाँ।
होईआँ लाल अनाराँ दे गुल्लाँ वांगूँ,
किसे दुखड़े नाल छुपावनी हाँ।
मुड्ढ प्यार दीआँ जनम दीआँ तत्तीआँ नूँ,
लक्ख लक्ख नसीहताँ लावनी हाँ।
बुल्ला सहु दा शौक छुपाए के ते,
जाहर<ref>प्रगट</ref> दूतिआँ<ref>चुगली</ref> दा गम खावनी हाँ।

ते - ताए के इशक हैरान कीता,
सीने विच्च अलंबड़ा<ref>भांबड़</ref> बालेआ ई।
मुक्खों कूकदिआँ आप नूँ फूक लई,
चुप्प कीतेआँ मैं तन जालिआ ई।
पापी बिरहों दा झक्खड़ झुल्लिआ तों,
लुक छुपे मेरा जीवन जालिआ ई।
बुल्ला सहु दी प्रीत दी रीत केही,
आही तत्तीआँ जाल सँभालिआ ई।

से - सबूत जो अक्खिआँ लग्ग रहीआँ,
इक्क मत्त प्रेम दी जाणनी हाँ।
गूँगी डोरी हाँ गैर दी बात कोलों,
सद्द यार दी सही सेआ´दी हाँ।
आही फडीआँ<ref>झाड़ना</ref> प्यार मेरा,
सीने विच्च तेरा माण माणनी हाँ।
बुल्ला शाह तैनूँ कोई सिक्क नाहीं,
तैनूँ भावनी आँ कि ना भावनी हाँ।

जीम - जान जानी मेरे कोल होवे,
किवें वस्स ना जान वसारनी हाँ।
दिने रात असह मिलण तेरीआँ,
मैं तेरे देखणे नाल गुजारनी हाँ।
घोल घोल घत्ती सल्ल हस्स करदा,
हरदम इसी दा नाम चितारनी हाँ।
बुल्ला शाह तैत्थों कुरबानी आँ मैं,
होर सभ कबीलड़ा वारनी आँ।

हे - हाल बेहाल दा कौण जाणे,
औक्खा इशक हँडावणा यार दा ई।
नित्त जारीयाँ नाल गुलज़ारीयाँ<ref>बहार</ref> मैं,
मुँह जोड़ गल्लाँ जग्ग सारदा ई।
हाए हाए मुठी किवें नेहुं छुपे,
मुँह पीलड़ा रंग वसारदा ई।
बुल्ला शाह दी कामना ज़ोर पाया,
मजजूब वाँगर चाहंगराँ<ref>चीखें मारना</ref> मारदा ई।

खे - खाब खयाल जहान होया,
बस बिरहों दीवानी दे वतनी हाँ।
मत नहीं अठवान<ref>माँदरी</ref> दे मंतराँ दी,
नागाँ काजेआँ नूँ हत्थ घत्तनी हाँ।
ताणी गंढदी हाँ ऐन उल्हक<ref>सच्चा परमात्मा</ref> वाली,
मैं महबूब दा कत्तणा कत्तणी हाँ।
बुल्ला शाह दे अम्ब रसंग लाहे,
पक्के बेर बबूला<ref>किकर</ref> दे पट्टनी हाँ।

दाल - दे दिलासड़ा दोस्ती दा,
तेरी दोस्ती नाल विकारनी हाँ।
झब आ अलख क्यों लखेआ ई,
अंजराँ बँधने थीं शरमावनी हाँ।
वावा पटिआँ छोटिआँ मोटिआँ नूँ,
हत्थ दे के ज़ोर हटावनी आँ।
बुल्ला सहु तेरे गल लावणे नूँ,
लक्ख लक्ख मैं शगन मनावनी आँ।

ज़ाल - जौक दित्ते ज़ात अपणी दा,
रही कम्म नकम्मड़े साड़नी हाँ।
लक्ख चैन घोले तेरे दुक्खड़े तों,
सेजे सुत्तेआँ सूल लताड़नी हाँ।
लज्ज चुक्किआ मत्त सुरत गइआँ,
लग्गा बिभूत गल पाड़नी हाँ।
बुल्ला सहु तेरे गल लग्गो नूँ,
लक्ख लक्ख शरीणिआँ धारनी हाँ।

 रे - रावला हुण रुला नाहीं,
मेरे नैण बेरागड़े हो रहे।
मुल्ला लक्ख तावीज पिला थक्के,
चंगी कौण आक्खे मापे रो रहे।
टूणे हारिआँ कामणाँ वालिआँ दे,
दारू हटके सभ खलो रहे।
बुल्ला शाह दे नाल हयात होणा,
हुण जान्दिआँ दे हत्थ धो रहे।

ज़े - ज़ोर न ज़ारो जाबता होर कोई,
ज़ारो ज़ार मैं आँसू परोवनी हाँ।
मैत्थों चकिआ होई गैर हाजरी ए,
मूली कौन से बाग दी होवनी हाँ।
भौरा हस्स के आण बुलाँवदा ए,
मैं ते रात सारी सुक्ख दी सोवनी हाँ।
बुल्ला सहु मर जावना ऐं,
तेरे दुःखाँ दे धोवणे धोवनी हाँ।

सीन - सभ्भे ही नाम तेरी साहिबी दे,
बैठी गीत वांगूँ गुण गाँवनी हाँ।
सज्जण सभ सहेलिआँ दिल दीआँ नूँ,
मैं ताँ होर खयाल सुनावणी हाँ।
जेही लगन सी एह उð लग्ग गई,
कक्खाँ विच्च ना भाह छुपावनी हाँ।
बुल्ले शाह तेरे अग्गे पैरी पवाँ,
ना हो दूर जो सुक्ख मनाँवदी हाँ।

शीन - शुकर करो सबो रोज़ रैहणा,
जिन्नाँ शौक तेरा तावन्दा<ref>जीवित रखना</ref> ए।
भंगी वांग उदास हैरान होई,
गाज़ी लक्ख पिच्छे दुःख लावन्दा ए।
तेरी ज़ात बिना है सच्ची बात केड़ी,
हत्थ लंबड़े<ref>लम्बे</ref> वैहण लुड़ावन्दा ए।
बुल्ला सहु जो तेरे दा औक्खिआ ई,
ओह हुण प्यारे दा मोड़ जलावन्दा ए।

सुआद - सबर ना सुक्ख सहेलिआँ नूँ,
भेत यार दा नहीं पछावन्दे नी।
खबर नहीं जो ओहना दी आशक हैं,
रब्ब दे गुल<ref>शोर</ref> पाए के धुम मचांवन्दे नी।
जित्थे भाह लग्गे ओत्थे ठंड केही,
उत्तों तेल मुआतड़ा<ref>आग भड़काने वाला</ref> पावन्दे नी।
बुल्ला सहु तों कुरबान होवाँ,
ऐवें आशकाँ नूँ लूतिआँ<ref>झूठी तोहमतें</ref> लावन्दे नी।

जुआद - ज़रब लग्गी साँग कलेजड़े च,
केही अग्ग लग्गी मैं खड़ी रोवनी हाँ।
तेरे दरस शराब अज़ाब होया,
फानी हो के ते खड़ी जीवनी हाँ।
ज़रा शौक दा जाम पिला मैनूँ,
बैठी बे खुद हार परोवनी हाँ।
बुल्ला शाह वेक्खाँ घर दे विच्च खली,
सिजदा करदी अते हत्थ जोड़नी हाँ।

फे - फहम<ref>समझ</ref> ना होर खयाल मैनूँ,
डिðे यार दी तक्कड़ी जीवणी हाँ।
कदे सीख ते कहर खलो के दे,
जाम वसल<ref>मिलाप</ref> दा बैठ मैं पीवनी हाँ।
मैं जाणदी इशक अखाड़िआँ नूँ।
सस्सी वाँग मैं रात कटीवणी हाँ।
बुल्ला शाह थीं दूर दराज़ होईआँ,
जेकर मिले महबूब ताँ जीवनी हाँ।

काफ - कबूल जरूर जाँ इशक कीता,
आहे होर ते हुण काई होर होए।
हुण समझ लै भला की आखनी हाँ,
मैं सुंदर थीं तख्त लाहौर होए।
सभ्भे लोक पए हत्थ जोड़दे ने,
साडे कामनाँ दे गिले ज़ोर होए।
बुल्ला शाह दा भेत ना दस्सदी हाँ,
हम ताँ अन्ने वांगर मनसूर होए।

काफ - केहीआँ कानीआँ लग्गीआँ ने,
गईआँ सल कलेजे नूँ डस्स गईआँ।
पट्ट पट्ट कड्ढां उत्तों होर लग्गे,
बन्द बन्द तों पट्ट के सट्ट घत्ताँ।
जिवें साहिबाँ साथ लुटा दित्ता,
तिवें कूंज वाँगर कुरलावनी हाँ।
बुल्ला शह दे इशक हैरान कीता,
औसिआँ पांवदी राह पुच्छनी हाँ।

शब्दार्थ
<references/>