भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूँदन-बूँदन / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बूँदन-बूँदन
झरे है बदरवा
हँसि-हँसि भीजति
झील रे !

पानी गावत राग मल्‍हरवा
मन-मीन पिअत
रस खींचि रे !

झूला-कजरी
गाएँ सखियाँ
लहरें नाचत झूमि रे !

घाट-घाट में
मेला लागत
जा ते
सावन से
अति प्रीति रे !

बूँदन-बूँदन
झरे है बदरवा
हँसि-हँसि भीजति
झील रे !