बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे / शहबाज़
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
बुलबुला आँखों से ख़ूना-बा-फ़िशानी माँगे
बहर-ए-उल्फ़त में चला है तो पहले मस्तूल
तीर से आह के कश्ती-ए-दुख़ानी माँगे
नुक्ता-ए-वस्ल दम-ए-अर्ज़ क़लम पर रक्खे
बोसा चाहे तो लब-ए-शौक़ ज़बानी माँगे
ता-क़यामत दिल-ए-बेदार सुनाए हर रोज़
ख़्वाब-ए-राहत तेरा गर रोज़ कहानी माँगे
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
इस का काटा कोई अफ़आ भी न पानी माँगे
तेरे क़दमों की ब-दौलत है निशाँ तुर्बत पर
इस से बढ़ कर कोई क्या मर के निशानी माँगे
उस जवाँ के ग़म-ए-हिज्राँ ने किया है बूढ़ा
ख़िज़्र भी देख के जिस बुत को जवानी माँगे
चाह में उस मह-ए-नख़शब के शब ओ रोज़ हैं ग़र्क़
क़ाज़ जिस का मह-ए-कनआँ से शबानी माँगे
ख़ारिज इम्काँ से है 'शहबाज़' शहीदों का शुमार
कोई किस किस के लिए मर्सिया-ख़्वानी माँगे