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बूँद टपकी एक नभ से / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
बूँद टपकी एक नभ से
किसी ने झुककर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो
हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो
ठगा-सा कोई किसी की
आँख देखे रह गया हो
उस बहुत से रूप को
रोमांच रो के सह गया हो
बूँद टपकी एक नभ से
और जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
अभ्र थोड़ा हट गया था
बूँद टपकी एक नभ से
ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बन्द हो ले
और नूपुर ध्वनि झमककर
जिस तरह द्रुत छन्द हो ले
उस तरह
बादल सिमटकर,
चंद्र पर छाए अचानक
और पानी के हज़ारों बूँद
तब आए अचानक