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बूँद / अनिता मंडा
Kavita Kosh से
आसमान में फरफरा रही थी पतंग
हवा से बतियाती
बन्धनों से लेती ऊर्जा
एक संशय की बूँद ने
सीलन से भर दिया अंतस
कहीं अटक गई उड़ान
हवा से जूझ रही है
फटा हुआ दामन लिए
टूटा हुआ मन लिए