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बूँद / शीला तिवारी
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बादल से विलग जल की बूँदें
वसुधा तले आकार मिटे
सबमें समा, अपने को मिटा
नवजीवन संचार करे
सर-सरिता, नद-नाला संग
बह नीरनिधि में मिले
नए बूँद बनने की ओर
चक्र यह फिर चल पड़े
बूँद सा मानव तन
चक्र जीवन-मरण का
पुराने ढलते, नए गढ़ते
कहीँ-न-कही हम अपनों में बसे
आकार मिटे, अस्तित्व नहीं
जीवन का सार है 'बूँद'।