बूंद में कैसे छिपा रहता है सागर देखो / मनोज अहसास
बूंद में कैसे छिपा रहता है सागर देखो
अपने अहसास के दरिया में उतरकर देखो
रोती फिरती है वफ़ा इश्क़ में दर दर देखो
कितने ज्यादा है ज़माने में सितमगर देखो
कैसे आया है मेरे सर पे ये छप्पर देखो
मेरे पापा की हथेली को भी पढ़कर देखो
सर पे मालिक के नए कपड़े की चादर देखो
सारी दुनिया को बनाकर उसे बेघर देखो
सख्त कोशिश थी मेरी तुम रहो दिल में मेरे
कैसे बिखरा है तेरे गम में मेरा घर देखो
तेरी दुनिया में सभी एक बराबर लेकिन
रौशनी सबको नहीं मिलती बराबर देखो
मैं तेरे इश्क में बेबात फ़ना हो बैठा
काम आया न तेरे दर के मेरा सर देखो
भावना कौनसी थी उसको मैं समझा ही नहीं
शाइरी चूमती है सत्ता की ठोकर देखो
देखकर मेरी निगाहो की तलब को यारो
पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो
मुझसे होता तो नहीं तेरा बयां इश्क़ कभी
लोग कहने न लगे मुझको सुखनवर देखो
सारी दुनिया से फरेबो से अदाकारी से
जल न जाये कहीं"अहसास"का मंज़र देखो