बूझ बेहूदी काह्ल तला पै भाजी नहीं अंघाई करकै / मेहर सिंह
वार्ता- पदमावत अपनी सखियों को बताती है कि ये मर्द बड़े बेवफा होते हैं, इन्होंने कभी किसी से प्रीत नहीं निभाई। पुरुषों की निंदा सुनकर रणबीर सैन पदमावत की सखियों को कहता है इसे कह दो-
इस रागनी में पंडित लखमीचंद और श्री मेहर सिंह की मिली जुली कली हैं
सहम मरण नै होरी गौरी अपणी आप बड़ाई करकै
बूझ बेहूदी काह्ल तला पै भाजी नहीं अंघाई करकै।टेक
नल मौके पै ठीक सम्भलग्या जब कलयुग का बखत लिकड़ग्या
रच्या स्वयंबर फेर बर मिलग्या करड़ाई नरमाई करके
फेर स्वर्ण का दिया शरीर बणा विषियर नै चतुराई करके।
लागी थोथे थूकां के तारण ताने यह चलतां कै मारण
श्री राम चन्द्र नै मर्यादा के कारण तजदी सिया बुराई करकै
ना तै आज जगत मैं कोण जाणै था मात जनक की जाई करकै।
कैरों कर रे थे आपा धापी, धर्मसुत चाहवै था इन्साफी
महाभारत में कैरु पापी मारे नहीं लड़ाई करकै।
भरी सभा में न्यूं ना बोले सोचगे बखत समाई करकै।
ये कोए दिन के दर्शन मेले, उड़ज्या हंस रहैं काग अकेले,
जितने लखमी चन्द के चेले सांझै सोज्यां काख नवाई करकै
एक मर्ज नहीं आच्छा होता मर लिया वैद्य दवाई करकै।
माया बैरण लुट ले हंस कै, नागण बिल मैं बड़ज्या डसकै,
इन बीरां के फंदे में फंस कै, मर लिए लोग थकाई करकै,
मेहर सिंह कह नफा मिल्या ना बीरां गैल भलाई करकै।